Noor Jehan - Mujhse Pehli Si Muhabbat
मुझ से पेहली सी मोहब्बत, मेरे मेहबूब ना माँग
मुझ से पेहली सी मोहब्बत, मेरे मेहबूब ना माँग
मुझ से पेहली सी मोहब्बत, मेरे मेहबूब ना माँग
मुझ से पेहली सी मोहब्बत, मेरे मेहबूब ना माँग
मैंने समझा था के तू है तो दरख़्शां है हयात
तेरा ग़म है तो ग़म ए दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
तेरी आखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है
तेरी आखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है
तू जो मिल जाये तो तक़दीर निगूँ हो जाये
यूँ न था मैंने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाये
मुझ से पेहली सी मोहब्बत, मेरे मेहबूब ना माँग
मुझ से पेहली सी मोहब्बत, मेरे मेहबूब ना माँग
अनगिनत सदियों के तारीक बहिमाना तलिस्म
अनगिनत सदियों के तारीक बहिमाना तलिस्म
रेशम ओ अठलस ओ कमख़ाब में बुनवाये हुए
जा ब जा बिकते हुए कूचा ओ बाज़ार में जिस्म
ख़ाक में लिथड़े हुए ख़ून में नेहलाए हुए
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजिये
अब भी दिलकश है तेरा हुस्न, मग़र क्या कीजिये
अब भी दिलकश है तेरा हुस्न, मग़र क्या कीजिये
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
मुझ से पेहली सी मोहब्बत, मेरे मेहबूब ना माँग
मुझ से पेहली सी मोहब्बत, मेरे मेहबूब ना माँग
Written by:
Faiz Ahmed Faiz
Publisher:
Lyrics © Royalty Network
Lyrics powered by Lyric Find