Gulzar - Yeh Kaisi Umr Mein Aakar Mili Ho Tum
ये कैसी उम्र में आकर मिली हो तुम
बहोत जी चाहता है फिर से बोऊ अपनी आंखें
तुम्हारे ढेर से चेहरे उगाऊं, और बुलाऊँ बारिशों को
बहुत जी है कि फुर्सत हो, तसब्बुर हो
तसब्बुर में जरा सी बागवानी हो
मगर जानां, इक ऐसी उम्र में आकर मिली हो तुम
किसी के हिस्से कि मट्टी नहीं हिलती
किसी की धूप का हिस्सा नहीं छीनता
मगर अब मेरी क्यारी मे लगे पौधे
किसी को पाँव रखने के लिए भी थाह नहीं देते
ये कैसी उम्र में आकर मिली हो तुम
Written by:
GULZAR
Publisher:
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