Jagjit Singh - Dost Ghamkhwari Mein Meri Sahi Farmayenge Kya

दोस्त ग़मख़्वारी में मेरी सई फ़र्मावेंगे क्या
ज़ख़्म के भरने तलक नाख़ून न बढ़ जावेंगे क्या

हज़रत-ए-नासेह गर आयें दीदा-ओ-दिल, फ़र्श-ए-राह
हज़रत-ए-नासेह गर आयें दीदा-ओ-दिल, फ़र्श-ए-राह
कोई मुझको ये तो समझा दो कि समझावेंगे क्या

गर किया नासेह ने हमको क़ैद, अच्छा, यों सही
ये जुनून-ए-इश्क़ के अन्दाज़ छुट जावेंगे क्या

ख़ानाज़ाद-ए-ज़ुल्फ़ हैं ज़न्जीर से भागेंगे क्यों
हैं गिरफ़्तार-ए-वफ़ा, ज़िन्दाँ से घबरावेंगे क्या

है अब इस मा’मूरे में क़हत-ए-ग़म-ए-उल्फ़त ‘असद’
है अब इस मा’मूरे में क़हत-ए-ग़म-ए-उल्फ़त ‘असद’
हमने ये माना कि दिल्ली में रहे, खावेंगे क्या

Written by:
JAGJIT SINGH, MIRZA GHALIB

Publisher:
Lyrics © Royalty Network

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Jagjit Singh

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