Kavita Krishnamurthy - Ek Kabhi Do Kabhi

हाय

हुस्न पे इतना मग़रूर क्यों है
चार दिन की है ये ज़िंदगानी
एक चढ़ती-उतरती नदी है, (हां हां हां)
जिसको समझा है तूने जवानी

हे, हे, ला-ला-ला
हे, हे, ला-ला-ला

एक कभी (होय!), दो कभी (होय-होय!)

एक कभी, दो कभी, तीन कभी, चार-चार
आने लगे मेरी गली, हाय (होय, होय, होय, होय, हे!)

एक कभी, दो कभी, तीन कभी, चार-चार
आने लगे मेरी गली, हाय

भँवरे बहुत, मैं अकेली कली
भँवरे बहुत, मैं अकेली कली

कोई कहे (होय!) 'लैला' मुझे (होय!)
कोई कहे 'लैला' मुझे, कोई कहे sweety मुझे
कोई कहे मनचली, हाय

भँवरे बहुत, मैं अकेली कली
भँवरे बहुत, मैं अकेली कली

होय
होय

शोख़ अदाएँ, ये तीखी निगाहें, गुलाब सा महका बदन
रूप की मस्ती, ये आँखों का जादू, दीवानों का दीवानपन, हो
ओ, शोख़ अदाएँ, ये तीखी निगाहें, गुलाब सा महका बदन
रूप की मस्ती, ये आँखों का जादू, दीवानों का दीवानपन, हो

देख लूँ मैं (होय!) हँस के जिसे (होय-होय!)
हँस के जिसे देख लूँ मैं
समझो कि बस मचने लगे दिल में उसकी खलबली, हाय

भँवरे बहुत, मैं अकेली कली
भँवरे बहुत, मैं अकेली कली (हे हे हे आ)

आई है कैसी निगोड़ी जवानी कि फँस गई मुश्किल में जाँ
घर से निकलना मुहाल हो गया है, मैं जाऊँ तो जाऊँ कहाँ? हाँ
हो, आई है कैसी निगोड़ी जवानी कि फँस गई मुश्किल में जाँ
घर से निकलना मुहाल हो गया है, मैं जाऊँ तो जाऊँ कहाँ? हाँ

सबसे हसीं (होय!), सबसे जुदा (होय-होय!)
सबसे जुदा, सबसे हसीं, मुझ सी यहाँ कोई नहीं
लड़की हूँ मैं चुलबुली, हाय

भँवरे बहुत, मैं अकेली कली
भँवरे बहुत, मैं अकेली कली

एक कभी (होय!), दो कभी (होय!)
एक कभी, दो कभी, तीन कभी, चार-चार
आने लगे मेरी गली, हाय

भँवरे बहुत, मैं अकेली कली
भँवरे बहुत, मैं अकेली कली

हाँ, हाँ, हाँ, ला-ला-ला
हाँ, हाँ, हाँ, ला-ला-ला
ला, ला, ला-ला-ला (ला-ला-ला-ला-ला-ला-ला)

हो ओ हो हे हे आ आ


Written by:
FAIZ ANWAR, SAJID ALI, WAJID ALI

Publisher:
Lyrics © Royalty Network

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