Shabbir Kumar - Aag Ka Gola

जो अंगरो पर चलता है
जो अपनी आग मे जलता हे
बनते बनते एक दिन वो इंसान बन जाता है
आग का गोला

आग का गोला
आग का गोला

आग का गोला

जो जुल सितम के अंधेरो से एक सूरज बनकर उभरता है
वो खुद को जलाकर औरो के जीवन मे उजाला करता हे ह ह ह ह ह ह

हर गम का जहर जो पिता हे
हर हाल मे हस के जीता है
बनते बनते एक दिन वो इंसान बन जाता है
आग का गोला

आग का गोला
आग का गोला

आग का गोला

Written by:
ANJAAN, BAPPI LAHIRI

Publisher:
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Shabbir Kumar

Shabbir Kumar

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