Chitra Singh - Kabhi To Khul Ke Baras

कभी तो खुल के बरस अब रे मेहरबान की तरह
कभी तो खुल के बरस अब रे मेहरबान की तरह
मेरा बजूद हैं जलते हुए मकान की तरह
कभी तो खुल के बरस अब रे मेहरबान की तरह

मैं एक ख्वाब सही आपकी अमानत हूँ
मैं एक ख्वाब सही आपकी अमानत हूँ
मुझे संभाल के रखिएगा जिसमों-ओ-जाँ की तरह
मेरा वजूद हैं जलते हुए मकान की तरह
कभी तो खुल के बरस अब रे मेहरबान की तरह

कभी तो सोच के वो शख्स किस कदर था बुलंद
कभी तो सोच के वो शख्स किस कदर था बुलंद
जो बिछ गया तेरे कदमों में आसमान की तरह
मेरा वजूद हैं जलते हुए मकान की तरह
कभी तो खुल के बरस अब रे मेहरबान की तरह

बुला रहा हैं मुझे फिर किसी बदन का बसंत
बुला रहा हैं मुझे फिर किसी बदन का बसंत
गुजर ना जाये ये रुत भी कहीं खिजां की तरह
मेरा वजूद हैं जलते हुए मकान की तरह
कभी तो खुल के बरस अब रे मेहरबान की तरह

Written by:
JAGJIT SINGH, PREM WARWARTANI

Publisher:
Lyrics © Royalty Network

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Chitra Singh

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