Vinod Sehgal - Shayer - E - Fitrat Hoon Mein
शायर-ए-फ़ितरत हूँ जब भी फ़िक्र फ़रमाता हूँ मैं (वाह, वाह, वाह, वाह)
शायर-ए-फ़ितरत हूँ जब भी फ़िक्र फ़रमाता हूँ मैं
रूह बन कर ज़र्रे ज़र्रे में समा जाता हूँ मैं (वाह, वाह ,वाह, वाह)
रूह बन कर ज़र्रे ज़र्रे में समा जाता हूँ मैं (वाह, वाह)
आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं (वाह, वाह, वाह, क्या बात है)
आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं
जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता हूँ मैं (वाह, वाह ,वाह, वाह, बोहोत खूब)
जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता हूँ मैं (बोहोत खूब, बोहोत खूब वाह, वाह, क्या बात है)
तेरी महफ़िल तेरे जल्वे फिर तक़ाज़ा क्या ज़रूर
तेरी महफ़िल तेरे जल्वे फिर तक़ाज़ा क्या ज़रूर
ले उठा जाता हूँ ज़ालिम ले चला जाता हूँ मैं
ले उठा जाता हूँ ज़ालिम ले चला जाता हूँ मैं
हाए-री मजबूरियाँ तर्क-ए-मोहब्बत के लिए
हाए-री मजबूरियाँ तर्क-ए-मोहब्बत के लिए
मुझ को समझाते हैं वो और उनको समझाता हूँ मैं
मुझ को समझाते हैं वो और उनको समझाता हूँ मैं
एक दिल है और तूफ़ान-ए-हवादिस ऐ जिगर
एक दिल है और तूफ़ान-ए-हवादिस ऐ जिगर
एक शीशा है कि हर पत्थर से टकराता हूँ मैं
एक शीशा है कि हर पत्थर से टकराता हूँ मैं
Written by:
Jigar Muradabadi, Jagjit Singh
Publisher:
Lyrics © Royalty Network
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