Bhupinder Singh - Kaanch Ke Peeche

काँच के पीछे चाँद भी था
और काँच के उपर काई भी

काँच के पीछे चाँद भी था
और काँच के उपर काई भी
तीनो थे हम वो भी थे
और मैं भी था तन्हाई भी
तन्हाई भी
काँच के पीछे चाँद भी था
और काँच के उपर काई भी
तीनो थे हम वो भी थे
और मैं भी था तन्हाई भी तन्हाई भी
काँच के पीछे चाँद भी था
और काँच के उपर काई भी

दो दो शकलें दिखती है
इस बहके से आईने में
दो दो शकलें दिखती है
इस बहके से आईने में
मेरे साथ चला आया है
आपका एक सौदाई भी सौदाई भी
काँच के पीछे चाँद भी था
और काँच के उपर काई भी

खामोशी का आस भी
एक लंबी सी खामोशी थी
खामोशी का आस भी
एक लंबी सी खामोशी थी
उनकी बात सुनी भी हमने
अपनी बात सुनाई भी सुनाई भी
काँच के पीछे चाँद भी था
और काँच के उपर काई भी
काँच के पीछे चाँद भी था
और काँच के उपर काई भी
तीनो थे हम वो भी थे
और मैं भी था तन्हाई भी
काँच के पीछे चाँद भी था
और काँच के उपर काई भी
और काँच के उपर काई भी
और काँच के उपर काई भी

Written by:
SINGH BHUPINDER (GB - CNTRY), SINGH MITALI

Publisher:
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Bhupinder Singh

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Chand Parosa Hai Chand Parosa Hai