Dr. Saket Mathur - Kuchh Na Kaho
कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो
कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो
क्या कहना है, क्या सुनना है
मुझको पता है, तुमको पता है
समय का ये पल थम सा गया है
और इस पल में कोई नहीं है
बस एक मैं हूँ, बस एक तुम हो
कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो...
कितने गहरे हलके, शाम के रंग हैं छलके
परबत से यूँ उतरे बादल, जैसे आँचल ढलके
कितने गहरे हलके, शाम के रंग हैं छलके
परबत से यूँ उतरे बादल, जैसे आँचल ढलके
और इस पल में कोई नहीं है
बस एक मैं हूँ, बस एक तुम हो
कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो...
सुलगी सुलगी साँसे, बहकी बहकी धड़कन
महके महके शाम के साए, पिघले पिघले तन मन
सुलगी सुलगी साँसे, बहकी बहकी धड़कन
महके महके शाम के साए, पिघले पिघले तन मन
और इस पल में कोई नहीं है
बस एक मैं हूँ, बस एक तुम हो
कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो
क्या कहना है, क्या सुनना है
मुझको पता है, तुमको पता है
समय का ये पल थम सा गया है
और इस पल में कोई नहीं है
Written by:
JAVED AKHTAR, RAHUL DEV BURMAN
Publisher:
Lyrics © Royalty Network
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