Gulzar and क. स. चित्रा - Kachche Rang

कचे रंग उतार जाने दो
मौसम है गुज़र जाने दो

वो कब तक इंतज़ार करती
कोहरे मे खड़ा हुआ पुल
तो नज़र आ रहा था
लेकिन उस के सिरे नज़र
नही आते थे कभी
लगता उस के दोनो
सिरे एक ही तरफ है
और कभी लगता इस पुल
का कोई सिरा नही है
शाम बुझ रही थी
और आने वाले की
कोई आहत नही थी कही
नीचे बहता दरिया कह रहा था
आओ मेरे आगोश मे आ जाओ
मई तुम्हारी बदनामी
के सारे दाग च्छूपा लुगा
मट्टी के इस शरीर
से बहुत खेल चुके
इस खिलौने के राग
अब उतरने लगे है
कचे रंग उतार जाने दो
मौसम है गुज़र जाने दो
कचे रंग उतार जाने दो
मौसम है गुज़र जाने दो

नदी मे इतना है
पानी सब धूल जाएगा
मट्टी का टीला है
ये घुल जाएगा
इतनी सी मट्टी है
दरिया को बहाना है
दरिया को बहाने दो
सारे राग बिखर जाने दो

Written by:
VISHALGULZAR, GULZAR, VISHAL BHARADWAAJ

Publisher:
Lyrics © Sony/ATV Music Publishing LLC

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Gulzar and क. स. चित्रा

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