Mitali Singh - Andar Ka Gham

अंदर का घाम च्छूप ना सकेगा
बाहर की मुश्कानो से
अंदर का घाम च्छूप ना सकेगा
बाहर की मुश्कानो से
दिल को कब तक बहलाओगे
दिल को कब तक बहलाओगे
तुम झूठे अफ़सानो से
अंदर का घाम च्छूप ना सकेगा
बाहर की मुश्कानो से

आ आ आ आ
जब भी डुआं को हाथ उठाए
जब भी डुआं को हाथ उठाए
प्यार के मोटी माँगे हैं
जब भी डुआं को हाथ उठाए
प्यार के मोटी माँगे हैं
प्यार के मोटी माँगे हैं
और कोई डोलात कब माँगी
और कोई डोलात कब माँगी
हुँने तेरे फसनो से
और कोई डोलात कब माँगी
हुँने तेरे फसनो से
अंदर का घाम च्छूप ना सकेगा
बाहर की मुश्कानो से

आ आ आ आ आ आ
शहेर उजड़ कर बस जाते हैं
शहेर उजड़ कर बस जाते हैं
ये तो सब ने देखा हैं
शहेर उजड़ कर बस जाते हैं
ये तो सब ने देखा हैं
ये तो सब ने देखा हैं
लेकिन वो दिल कैसे बसे जो
लेकिन वो दिल कैसे बसे जो
उजाड़ा हो अरमानो से
लेकिन वो दिल कैसे बसे जो
उजाड़ा हो अरमानो से
दिल को कब तक बहलाओगे
दिल को कब तक बहलाओगे
तुम झूठे अफ़सानो से
अंदर का घाम च्छूप ना सकेगा
बाहर की मुश्कानो से
अंदर का घाम च्छूप ना सकेगा
बाहर की मुश्कानो से

Written by:
BHUPINDER SINGH, IBRAHIM ASHQ

Publisher:
Lyrics © Royalty Network

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Mitali Singh

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