Ustad Ghulam Ali - Dekhna Bhi To Unhe Door Se
देखना भी तो उन्हे डोर से देखा करना
देखना भी तो उन्हे डोर से देखा करना
शेवा ए इश्क़ नही हुस्न को रुसवा करना
देखना भी तो उन्हे डोर से देखा करना
देखना भी तो उन्हे डोर से देखा करना
इक नज़र ही तेरी काफ़ी है की ए रहते जान
इक नज़र ही तेरी काफ़ी है की ए रहते जान
कुच्छ भी दुश्वार ना था
मुझको शक़े बाद करना
देखना भी तो उन्हे डोर से देखा करना
इक नज़र ही
तेरी नज़र के निशाने बदलते रहते है
तेरी नज़र के निशाने बदलते रहते है
यह लोग तेरे बहाने बदलते रहते है
देखना भी तो उन्हे डोर से देखा करना
कुच्छ समझ में नही आता
कुच्छ समझ में नही
आता के ये क्या है हसरत
कुच्छ समझ में नही
आता के ये क्या है हसरत
कुच्छ समझ में नही नही नही नही नही
उनसे मिल कर भी ना इज़हारे ए तमन्ना करना
देखना भी तो उन्हे डोर से देखा करना
शेवा ए इश्क़ नही हुस्न को रुसवा करना
देखना भी तो उन्हे डोर से देखा करना
Written by:
GHULAM ALI, MOULANA HASRAT MOHANI
Publisher:
Lyrics © Royalty Network
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