Mukesh and Lata Mangeshkar - Ek Raat Men Do Do Chand Khile
एक रात मे दो दो चाँद खिले
एक घूँघट मे एक बदली मे
एक रात मे दो दो चाँद खिले
अपनी अपनी मंज़िल से मिले
एक घूँघट मे एक बदली मे
एक रात मे दो दो चाँद खिले
बदली का वो चाँद तो सबका है
घूँघट का यह चाँद तो अपना है
बदली का वो चाँद तो सबका है
घूँघट का यह चाँद तो अपना है
मुझे चाँद समझने वेल बता,
यह सच है या सपना है
यह सच है या सपना है
एक रात मे दो दो चाँद खिले
एक घूँघट मे एक बदली मे
अपनी अपनी मंज़िल से मिले
एक घूँघट मे एक बदली मे
एक रात मे दो दो चाँद खिले
मालूम नही दो अंजाने
रही कैसे मिल जाते हैं
मालूम नही दो अंजाने
रही कैसे मिल जाते हैं
फुलो को अगर खिलना हैं
वीरान मे भी खिल जाते हैं
वीरान मे भी खिल जाते हैं
एक रात मे दो दो चाँद खिले
एक घूँघट मे एक बदली मे
अपनी अपनी मंज़िल से मिले
एक घूँघट मे एक बदली मे
एक रात मे दो दो चाँद खिले
Written by:
Chitragupta, Rajinder Krishnan
Publisher:
Lyrics © Royalty Network
Lyrics powered by Lyric Find