Jagjit Singh - Ab Mere Paas Tum Aayee Ho

अब मेरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो

अब मेरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो
मैंने माना कि तुम एक पैकर-ए-रानाई हो
चमन-ए-दहर में रूह-ए-चमन-आराई हो
तल’अत-ए-मेहर हो, फिरदौस की बरनाई हो
बिन्त-ए-महताब हो, गर्दूं से उतर आई हो
मुझसे मिलने में अब अंदेशा-ए-रुसवाई है
मुझसे मिलने में अब अंदेशा-ए-रुसवाई है
मैंने ख़ुद अपने किए की ये सज़ा पाई है
अब मेरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो

उन दिनों मुझ पे क़यामत का जुनूँ तारी था
सर पे सरशारी-ओ-इशरत का जुनूँ तारी था
महा पारों से मुहब्बत का जुनूँ तारी था
शहर यारों से रक़ाबत का जुनूँ तारी था
बिस्तर-ए-मखमल-ओ-संजाब थी दुनिया मेरी
एक रंगीन-ओ-हसीं ख़्वाब थी दुनिया मेरी

क्या सुनोगी मेरी मजरूह जवानी की पुकार
मेरी फरियाद-ए-जिगर दोज़, मेरा नाला-ए-ज़ार
शिद्दत-ए-कर्ब में डूबी हुयी मेरी गुफ़्तार
मैं कि ख़ुद अपने मज़ाक-ए-तरब आगीं का शिकार
वो गुदाज़-ए-दिल-ए-मरहूम कहाँ से लाऊ
वो गुदाज़-ए-दिल-ए-मरहूम कहाँ से लाऊ
अब मैं वो जज़्बा-ए-मासूम कहाँ से लाऊ
अब मेरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो

Written by:
Majaz, Jagjit Singh

Publisher:
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