Vinod Sehgal - Agar Na Zohrajabeeno Ki
अगर न ज़ोहरा-जबीनों के दरमियाँ गुज़रे
अगर न ज़ोहरा-जबीनों के दरमियाँ गुज़रे
तो फिर ये कैसे कटे ज़िंदगी कहाँ गुज़रे
अगर न ज़ोहरा-जबीनों के दरमियाँ गुज़रे
तो फिर ये कैसे कटे ज़िंदगी कहाँ गुज़रे
मुझे ये वहम रहा मुद्दतों कि जुर्रत-ए-शौक़
मुझे ये वहम रहा मुद्दतों कि जुर्रत-ए-शौक़
कहीं न ख़ातिर-ए-मासूम पर गराँ गुज़रे
कहीं न ख़ातिर-ए-मासूम पर गराँ गुज़रे
तो फिर ये कैसे कटे ज़िंदगी कहाँ गुज़रे
अगर न ज़ोहरा-जबीनों के दरमियाँ गुज़रे
तो फिर ये कैसे कटे ज़िंदगी कहाँ गुज़रे
ख़ता-मुआफ़ ज़माने से बद-गुमाँ हो कर
ख़ता-मुआफ़ ज़माने से बद-गुमाँ हो कर
तेरी वफ़ा पे भी क्या क्या हमें गुमाँ गुज़रे
तेरी वफ़ा पे भी क्या क्या हमें गुमाँ गुज़रे
तो फिर ये कैसे कटे ज़िंदगी कहाँ गुज़रे
मुझे था शिकवा-ए-हिज्राँ कि ये हुआ महसूस
मुझे था शिकवा-ए-हिज्राँ कि ये हुआ महसूस
मेरे क़रीब से हो कर वो ना-गहाँ गुज़रे
मेरे क़रीब से हो कर वो ना-गहाँ गुज़रे
तो फिर ये कैसे कटे ज़िंदगी कहाँ गुज़रे
अगर न ज़ोहरा-जबीनों के दरमियाँ गुज़रे
तो फिर ये कैसे कटे ज़िंदगी कहाँ गुज़रे
Written by:
Jigar Muradabadi, Jagjit Singh
Publisher:
Lyrics © Royalty Network
Lyrics powered by Lyric Find