Anuradha Paudwal - Durge Durghat Bhari
दुर्गे दुर्घट भारी तुजविण संसारी
अनाथनाथे अंबे करुणा विस्तारी
वारी वारीं जन्ममरणाते वारी
हारी पडलो आता संकट नीवारी
जय देवी जय देवी जय महिषासुरमथनी हो दैत्यसुर्मार्दिनी
सुरवरईश्वरवरदे तारक संजीवनी जय देवी जय देवी
त्रिभुवनी भुवनी पाहतां तुज ऎसे नाही
चारी श्रमले परंतु न बोलावे काहीं
साही विवाद करितां पडिले प्रवाही
ते तूं भक्तालागी पावसि लवलाही जय देवी जय देवी
जय देवी जय देवी जय महिषासुरमथनी हो दैत्यसुर्मार्दिनी
सुरवरईश्वरवरदे तारक संजीवनी जय देवी जय देवी
प्रसन्न वदने प्रसन्न होसी निजदासां
क्लेशापासूनि सोडी तोडी भवपाशा
अंबे तुजवांचून कोण पुरविल आशा
नरहरि तल्लिन झाला पदपंकजलेशा जय देवी जय देवी
जय देवी जय देवी जय महिषासुरमथनी हो दैत्यसुर्मार्दिनी
सुरवरईश्वरवरदे तारक संजीवनी जय देवी जय देवी
Written by:
PAUDWAL ANURADHA
Publisher:
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