Mitali Singh - Kal Ki Raat Giri Thi Shabnam

कल की रात
कल की रात गिरी थी शबनम
कल की रात
कल की रात गिरी थी शबनम
हौले हौले कलियो के बंद होंठो पर
बरसी थी शबनम
कल की रात

फुलो के रुखसारो से रुखसार मिलकर
नीली रात की चुनरी के साए मे शबनम
परियो के अफ़सानो के पर खोल रहे थे
कल की रात कल की रात
कल की रात

दिल की मद्धम मद्धम हुलचल मे दो रूहे तेर रही थी
जैसे अपने नाज़ुक पँखो पर
आकाश को तौल रही हो
आकाश को तौल रही हो
कल की रात
कल की रात बड़ी उजली थी
कल की रात उजले थे सपने
कल की रात तेरे संग गुज़री
कल की रात कल की रात
कल की रात कल की रात
कल की रात

कल की रात कल की रात
कल की रात कल की रात
कल की रात कल की रात
कल की रात

Written by:
GULZAR, BHUPINDER SINGH, BHUPENDER SINGH

Publisher:
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Mitali Singh

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