Jagjit Singh and Chitra Singh - Kaun Kahta Hai

कौन कहता है
कौन कहता है
कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है

कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है (कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है)
ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है (ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है) (वाह, वाह, वाह)
कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है (कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है)

वो न आये तो सताती है ख़लिश सी दिल को

वो न आये तो सताती है ख़लिश सी दिल को (वो न आये तो सताती है ख़लिश सी दिल को)

वो जो आये तो ख़लिश और जवाँ होती है ( वाह,वाह,वाह)
ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है

कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है (कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है)

रूह को शाद करे, दिल को जो पुरनूर करे
दिल को जो पुरनूर, पुरनूर, पुरनूर
रूह को शाद करे, दिल को जो पुरनूर करे
हर नज़ारे में ये तनवीर कहाँ होती है ( वाह, वाह, वाह)

ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है (ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है)
कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है (कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है)

ज़ब्त-ए-सैलाब-ए-मुहब्बत को कहाँ तक रोकें

ज़ब्त-ए-सैलाब-ए-मुहब्बत को कहाँ तक रोकें (ज़ब्त-ए-सैलाब-ए-मुहब्बत को कहाँ तक रोकें)

दिल में जो बात हो आँखों से अयाँ होती है ( वाह, वाह, वाह)
ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है

कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है (कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है)

मक्ता पेश कर रहा हूँ
ज़िन्दग़ी एक सुलगती-सी चिता है साहिर
सुलगती-सी चिता
सुलगती-सी चिता
सुलगती-सी चिता
ज़िन्दग़ी एक सुलगती-सी चिता है साहिर
शोला बनती है न ये बुझ के धुआँ होती है ( वाह, वाह, वाह)

ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है (ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है)
कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है (कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है)

वाह, वाह, वाह, वाह, वाह

Written by:
JAGJIT SINGH, SAHIR HOSHIAPURI

Publisher:
Lyrics © Royalty Network

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Jagjit Singh and Chitra Singh

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