Gulzar - Sab Kuchh Vaise Hi Chalta Hai

सब कुछ वैसे ही चलता है
जैसे चलता था जब तुम थी
रात भी वैसे ही सर मूंदे आती है
दिन वैसे ही आँखें मलता जागता है

तारे सारी रात जम्हाईयाँ लेते हैं
सब कुछ वैसे ही चलता है
जैसे चलता था जब तुम थी

काश तुम्हारे जाने पर
कुछ फ़रक तो पड़ता जीने में
प्यास ना लगती पानी की
या नाखून बढ़ना बंद हो जाते
बाल हवा में ना उड़ते
या धुआँ निकलता साँसों से

सब कुछ वैसे ही चलता है
बस इतना फ़रक पड़ा है मेरी रातों में
नींद नहीं आती तो अब सोने के लिए
एक नींद की गोली रोज़ निगलनी पड़ती है

Written by:
GULZAR

Publisher:
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