Vinod Sehgal - Sham - E - Gham Kuchh

शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो
शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो
बेख़ुदी बढ़ती चली है राज़ की बातें करो
शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो

ये सुकूत-ए-नाज़ ये दिल की रगों का टूटना
ये सुकूत-ए-नाज़ ये दिल की रगों का टूटना
ख़ामोशी में कुछ शिकस्त-ए-साज़ की बातें करो
शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो

कुछ क़फ़स की तीलियों से छन रहा है नूर सा
कुछ क़फ़स की तीलियों से छन रहा है नूर सा
कुछ फ़ज़ा, कुछ हसरत-ए-परवाज़ की बातें करो
शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो

नकहत-ए-ज़ुल्फ़-ए-परीशाँ दास्तान-ए-शाम-ए-ग़म
नकहत-ए-ज़ुल्फ़-ए-परीशाँ दास्तान-ए-शाम-ए-ग़म
सुबह होने तक इसी अंदाज़ की बातें करो
शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो
बेख़ुदी बढ़ती चली है राज़ की बातें करो
शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो

Written by:
Firaq Gorakhpuri, Jagjit Singh

Publisher:
Lyrics © Royalty Network

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Vinod Sehgal

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