Gulzar - Takiye Pe Tere Voh Sar Ka

तकिये पे तेरे सर का वो टिप्पा है पड़ा है
चादर में तेरे जिस्म की वो सोंधी सी खुशबू
हाथों में महकता है तेरे चेहरे का एहसास
माथे पे तेरे होठों की मोहर लगी है
तू इतनी क़रीब है कि तुझे देखूँ तो कैसे
थोड़ी-सी अलग हो तो तेरे चेहरे को देखूँ

Written by:
GULZAR

Publisher:
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