Jagjit Singh - Taskeen - E - Dile Mehzoo Na Hui
तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ू न हुई वो सई-ए-क़रम फ़रमा भी गए
तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ू न हुई वो सई-ए-क़रम फ़रमा भी गए
इस सई-ए-क़रम का क्या कहिये बहला भी गए तड़पा भी गए
हम अर्ज़-ए-वफ़ा भी कर ना सके कुछ कह ना सके कुछ सुन ना सके
हम अर्ज़-ए-वफ़ा भी कर ना सके कुछ कह ना सके कुछ सुन ना सके
यां हम ने ज़बां ही खोले थी वां आँख झुकी शरमा भी गए
यां हम ने ज़बां ही खोले थी वां आँख झुकी शरमा भी गए
इस महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती में इस अंजुमन-ए-इरफ़ानी में
इस महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती में इस अंजुमन-ए-इरफ़ानी में
सब जाम-ब-कफ़ बैठे ही रहे हम पी भी गए छलका भी गए
सब जाम-ब-कफ़ बैठे ही रहे हम पी भी गए छलका भी गए
Written by:
Majaz, Jagjit Singh
Publisher:
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