Gulzar - Tere Aankhon Se Hi
तेरी आँखों से ही खुलते हैं सवेरों के उफूक़
तेरी आँखों से ही बंद होती है ये सीप की रात
तेरी आँखें हैं या सजदे में ग़मगीन नमाज़ी
पलकें खुलती हैं तो यूँ गूँज के उठती है नज़र
जैसे मन्दिर से जरस की चले नमनाक सदा
और झुकती हैं तो बस जैसे अज़ाँ ख़त्म हुई है
तेरी आँखें, तेरी ठहरी हुई ग़मगीन-सी आँखें
तेरी आँखों से ही तख़लीक़ हुई है सच्ची
तेरी आँखों से ही तख़लीक़ हुई है ये हयात
Written by:
GULZAR
Publisher:
Lyrics © Royalty Network
Lyrics powered by Lyric Find