Ghulam Ali - Woh Koi Aur Na Tha

वो कोई और ना था चाँद खुशक़ पत्ते थे
वो कोई और ना था चाँद खुशक़ पत्ते थे
वो कोई और ना था चाँद खुशक़ पत्ते थे
वो कोई और ना था चाँद खुशक़ पत्ते थे
शजार से टूट के जो फास्ल ए गुल पे रोए थे
वो कोई और ना था चाँद खुशक़ पत्ते थे
वो कोई और ना था चाँद खुशक़ पत्ते थे

अभी अभी तुम्हे सोचा तो कुच्छ ना याद आया
अभी अभी तुम्हे सोचा तो कुच्छ ना याद आया
अभी अभी तुम्हे सोचा तो कुच्छ ना याद आया
अभी अभी तो हम इक दूसरे से बिच्छड़े थे
अभी अभी तो हम इक दूसरे से बिच्छड़े थे
शजार से टूट के जो फास्ल ए गुल पे रोए थे
वो कोई और ना था चाँद खुशक़ पत्ते थे

तमाम उम्र वफ़ा के गुनहगार रहे
तमाम उम्र वफ़ा के गुनहगार रहे
ये और बात के हम आदमी तो अच्छे थे
शजार से टूट के जो फास्ल ए गुल पे रोए थे
वो कोई और ना था चाँद खुशक़ पत्ते थे
वो कोई और ना था चाँद खुशक़ पत्ते थे

नदीम जो भी मुलाक़ात थी अधूरी थी
नदीम जो भी मुलाक़ात थी अधूरी थी
नदीम जो भी मुलाक़ात थी अधूरी थी
के एक चेहरे के पिच्चे हज़ार चेहरे थे
के एक चेहरे के पिच्चे हज़ार चेहरे थे
शजार से टूट के जो फास्ल ए गुल पे रोए थे
वो कोई और ना था चाँद खुशक़ पत्ते थे
वो कोई और ना था चाँद खुशक़ पत्ते थे

Written by:
AHMED NADEEM QASMI, GHULAM ALI

Publisher:
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