Jagjit Singh and गुलज़ार - Zindagi Kya Hai
आदमी बुलबुला हैं पानी का
और पानी की बहती सतह पर
टूट ता भी हैं डूबता भी हैं
फिर उभरता हैं फिर से बहता हैं
ना समंदर निगल सका इसको
ना तवारीख तोड़ पाई हैं
वक़्त की मौज पर सदा बहता
आदमी बुलबुला हैं पानी का
ज़िंदगी क्या है जानने के लिये
ज़िंदा रहना बहुत जरुरी है
आज तक कोई भी रहा तो नही
सारी वादी उदास बैठी है
मौसम-ए-गुल ने ख़ुदकशी कर ली
किसने बारूद बोया बागों में
आओ हम सब पहन लें आईने
सारे देखेंगे अपना ही चेहरा
सबको सारे हसीं लगेंगे यहाँ
है नही जो दिखाई देता है
आईने पर छपा हुआ चेहरा
तर्जुमा आईने का ठीक नही
हम को ग़ालिब ने ये दुआ दी थी
तुम सलामत रहो हज़ार बरस
ये बरस तो फ़क़त दिनों में गया
लब तेरे मीर ने भी देखे है
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है
बात सुनते तो ग़ालिब हो जाते
ऐसे बिखरे हैं रात दिन जैसे
मोतियों वाला हार टूट गया
तुमने मुझको पिरो के रखा था
तुमने मुझको पिरो के रखा था
ह्म्म्म ह्म्म्म ह्म्म्म
Written by:
GULZAR, JAGJIT SINGH
Publisher:
Lyrics © Sony/ATV Music Publishing LLC
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